दह्र में नक़्श-ए वफ़ा वजह-ए तसल्ली न हुआ
है यह वह लफ़्ज़ कि शर्मिन्दह-ए म`नी न हुआ
सब्ज़ह-ए ख़त से तिरा काकुल-ए सर-कश न दबा
यह ज़ुमुर्रुद भी हरीफ़-ए दम-ए अफ़`ई न हुआ
मैं ने चाहा था कि अन्दोह-ए वफ़ा से छूटूं
वह सितम्गर मिरे मर्ने पह भी राज़ी न हुआ
दिल गुज़र-गाह-ए ख़याल-ए मै-ओ-साग़र ही सही
गर नफ़स जादह-ए सर-मन्ज़िल-ए तक़्वी न हुआ
हूं तिरे व`दह न करने में भी राज़ी कि कभी
गोश मिन्नत-कश-ए गुल्बांग-ए तसल्ली न हुआ
किस से मह्रूमी-ए क़िस्मत की शिकायत कीजे
हम ने चाहा था कि मर जाएं सो वह भी न हुआ
मर गया सद्मह-ए यक-जुन्बिश-ए लब से ग़ालिब
नातुवानी से हरीफ़-ए दम-ए `ईसा न हुआ
No comments:
Post a Comment