न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता
हुआ जब ग़म से यूं बे-हिस तो ग़म क्या सर के कट्ने का
न होता गर जुदा तन से तो ज़ानू पर धरा होता
हुई मुद्दत कि ग़ालिब मर गया पर याद आता है
वह हर इक बात पर कह्ना कि यूं होता तो क्या होता
अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
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अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
हम लोग जब मिले तो कोई दूसरा भी हो
तू जानता नहीं मेरी चाहत अजीब है
मुझको मना रहा हैं कभी ख़ुद खफ़ा भी हो
तू बेवफ़ा नही...
1 comment:
Galib was wonderful
http://vivj2000.blogspot.com/
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