आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त
दूद-ए-शम-ए-कुश्ता था शायद ख़त-ए-रुख़्सार-ए-दोस्त
ऐ दिले-ना-आकिबतअंदेश ज़ब्त-ए-शौक़ कर
कौन ला सकता है ताबे-जल्वा-ए-दीदार-ए-दोस्त
ख़ाना वीराँसाज़ी-ए-हैरत तमाशा कीजिये
सूरत-ए-नक़्शे-क़दम हूँ रफ़्ता-ए-रफ़्तार-ए-दोस्त
इश्क़ में बेदाद-ए-रश्क़-ए-ग़ैर ने मारा मुझे
कुश्ता-ए-दुश्मन हूँ आख़िर गर्चे था बीमार-ए-दोस्त
चश्म-ए-मय रौशन कि उस बेदर्द का दिल शाद है
दीदा-ए-पुर-ख़ूँ हमारा सागर-ए-सर-शार-ए-दोस्त
अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
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अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
हम लोग जब मिले तो कोई दूसरा भी हो
तू जानता नहीं मेरी चाहत अजीब है
मुझको मना रहा हैं कभी ख़ुद खफ़ा भी हो
तू बेवफ़ा नही...
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