चाहिये अच्छों को जित्ना चाहिये
यह अगर चाहें तो फिर क्या चाहिये
सुह्बत-ए रिन्दां से वाजिब है हज़र
जा-ए मै अप्ने को खेंचा चाहिये
चाह्ने को तेरे क्या सम्झा था दिल
बारे अब उस से भी सम्झा चाहिये
चाक मत कर जेब बे-अय्याम-ए गुल
कुछ उधर का भी इशारा चाहिये
दोस्ती का पर्दह है बेगानगी
मुंह छुपाना हम से छोड़ा चाहिये
दुश्मनी ने मेरी खोया ग़ैर को
किस क़दर दुश्मन है देखा चाहिये
अप्नी रुस्वाई में क्या चल्ती है स`ई
यार ही हन्गामह-आरा चाहिये
मुन्हसिर मर्ने पह हो जिस की उमीद
ना-उमीदी उस की देखा चाहिये
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