जिन्दगी अपनी जब इस शक्ल से गुजरी ग़ालिब
हम भी क्या याद रखेंगे कि खुदा रखते थे
अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
-
अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
हम लोग जब मिले तो कोई दूसरा भी हो
तू जानता नहीं मेरी चाहत अजीब है
मुझको मना रहा हैं कभी ख़ुद खफ़ा भी हो
तू बेवफ़ा नही...
No comments:
Post a Comment