आईनह देख अप्ना-सा मुंह ले के रह गये
साहिब को दिल न देने पह कित्ना ग़ुरूर था
क़ासिद को अप्ने हाथ से गर्दन न मारिये
उस की ख़ता नहीं है यह मेरा क़सूर था
अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
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अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
हम लोग जब मिले तो कोई दूसरा भी हो
तू जानता नहीं मेरी चाहत अजीब है
मुझको मना रहा हैं कभी ख़ुद खफ़ा भी हो
तू बेवफ़ा नही...
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