Monday, October 22, 2007

तू दोस्‌त किसी का भी सितम्‌गर न हुआ था

तू दोस्‌त किसी का भी सितम्‌गर न हुआ था
औरों पह है वह ज़ुल्‌म कि मुझ पर न हुआ था

छोड़ा मह-ए नख़्‌शब की तरह दस्‌त-ए क़ज़ा ने
ख़्‌वुर्‌शीद हनूज़ उस के बराबर न हुआ था

तौफ़ीक़ ब अन्‌दाज़ह-ए हिम्‌मत है अज़ल से
आंखों में है वह क़त्‌रह जो गौहर न हुआ था

जब तक कि न देखा था क़द-ए यार का `आलम
मैं मु`तक़िद-ए फ़ित्‌नह-ए मह्‌शर न हुआ था

मैं सादह-दिल आज़ुर्‌दगी-ए यार से ख़्‌वुश हूं
य`नी सबक़-ए शौक़ मुकर्‌रर न हुआ था

दर्‌या-ए म`आसी तुनुक-आबी से हुआ ख़ुश्‌क
मेरा सर-ए दामन भी अभी तर न हुआ था

जारी थी असद दाग़-ए जिगर से मिरी तह्‌सील
आतिश-कदह जागीर-ए समन्‌दर न हुआ था

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