तू दोस्त किसी का भी सितम्गर न हुआ था
औरों पह है वह ज़ुल्म कि मुझ पर न हुआ था
छोड़ा मह-ए नख़्शब की तरह दस्त-ए क़ज़ा ने
ख़्वुर्शीद हनूज़ उस के बराबर न हुआ था
तौफ़ीक़ ब अन्दाज़ह-ए हिम्मत है अज़ल से
आंखों में है वह क़त्रह जो गौहर न हुआ था
जब तक कि न देखा था क़द-ए यार का `आलम
मैं मु`तक़िद-ए फ़ित्नह-ए मह्शर न हुआ था
मैं सादह-दिल आज़ुर्दगी-ए यार से ख़्वुश हूं
य`नी सबक़-ए शौक़ मुकर्रर न हुआ था
दर्या-ए म`आसी तुनुक-आबी से हुआ ख़ुश्क
मेरा सर-ए दामन भी अभी तर न हुआ था
जारी थी असद दाग़-ए जिगर से मिरी तह्सील
आतिश-कदह जागीर-ए समन्दर न हुआ था
अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
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अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
हम लोग जब मिले तो कोई दूसरा भी हो
तू जानता नहीं मेरी चाहत अजीब है
मुझको मना रहा हैं कभी ख़ुद खफ़ा भी हो
तू बेवफ़ा नही...
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