दर्द मिन्नत-कश-ए दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ
जम`अ कर्ते हो क्यूं रक़ीबों को
इक तमाशा हुआ गिला न हुआ
हम कहां क़िस्मत आज़्माने जाएं
तू ही जब ख़न्जर-आज़्मा न हुआ
कित्ने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब
गालियां खा के बे-मज़ा न हुआ
है ख़बर गर्म उन के आने की
आज ही घर में बोरिया न हुआ
क्या वह नम्रूद की ख़ुदाई थी
बन्दगी में मिरा भला न हुआ
जान दी दी हुई उसी की थी
हक़ तो यूं है कि हक़ अदा न हुआ
ज़ख़्म गर दब गया लहू न थमा
काम गर रुक गया रवा न हुआ
रह्ज़नी है कि दिल-सितानी है
ले के दिल दिल-सितां रवानह हुआ
कुछ तो पढ़्ये कि लोग कह्ते हैं
आज ग़ालिब ग़ज़ल-सरा न हुआ
लता मंगेशकर की आवाज़ में सुने
स्रोत: हिंद युग्म
अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
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अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
हम लोग जब मिले तो कोई दूसरा भी हो
तू जानता नहीं मेरी चाहत अजीब है
मुझको मना रहा हैं कभी ख़ुद खफ़ा भी हो
तू बेवफ़ा नही...
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