Monday, October 22, 2007

दर्द मिन्नत कशे दवा ना हुआ

दर्‌द मिन्‌नत-कश-ए दवा न हुआ
मैं न अच्‌छा हुआ बुरा न हुआ

जम`अ कर्‌ते हो क्‌यूं रक़ीबों को
इक तमाशा हुआ गिला न हुआ

हम कहां क़िस्‌मत आज़्‌माने जाएं
तू ही जब ख़न्‌जर-आज़्‌मा न हुआ

कित्‌ने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब
गालियां खा के बे-मज़ा न हुआ

है ख़बर गर्‌म उन के आने की
आज ही घर में बोरिया न हुआ

क्‌या वह नम्‌रूद की ख़ुदाई थी
बन्‌दगी में मिरा भला न हुआ

जान दी दी हुई उसी की थी
हक़ तो यूं है कि हक़ अदा न हुआ

ज़ख़्‌म गर दब गया लहू न थमा
काम गर रुक गया रवा न हुआ

रह्‌ज़नी है कि दिल-सितानी है
ले के दिल दिल-सितां रवानह हुआ

कुछ तो पढ़्‌ये कि लोग कह्‌ते हैं
आज ग़ालिब ग़ज़ल-सरा न हुआ

लता मंगेशकर की आवाज़ में सुने



स्रोत: हिंद युग्म

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