बसकि दुश्वार है हर काम का आसां होना
आद्मी को भी मुयस्सर नहीं इन्सां होना
गिर्यह चाहे है ख़राबी मिरे काशाने की
दर-ओ-दीवार से टप्के है बियाबां होना
वाए दीवानगी-ए शौक़ कि हर दम मुझ को
आप जाना उधर और आप ही हैरां होना
जल्वह अज़-बसकि तक़ाज़ा-ए निगह कर्ता है
जौहर-ए आइनह भी चाहे है मिज़ह्गां होना
`इश्रत-ए क़त्ल-गह-ए अह्ल-ए तमन्ना मत पूछ
`ईद-ए नज़्ज़ारह है शम्शीर का `उर्यां होना
ले गए ख़ाक में हम दाग़-ए तमन्ना-ए निशात
तू हो और आप ब सद-रन्ग गुलिस्तां होना
`इश्रत-ए पारह-ए दिल ज़ख़्म-ए तमन्ना खाना
लज़्ज़त-ए रेश-ए जिगर ग़र्क़-ए नमक्दां होना
की मिरे क़त्ल के ब`द उस ने जफ़ा से तौबह
हाए उस ज़ूद-पशेमां का पशेमां होना
हैफ़ उस चार गिरह कप्ड़े की क़िस्मत ग़ालिब
जिस की क़िस्मत में हो `आशिक़ का गरेबां होना
अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
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अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
हम लोग जब मिले तो कोई दूसरा भी हो
तू जानता नहीं मेरी चाहत अजीब है
मुझको मना रहा हैं कभी ख़ुद खफ़ा भी हो
तू बेवफ़ा नही...
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