Sunday, November 25, 2007

गई वह बात कि हो गुफ़्‌तगो तो क्‌यूंकर हो

गई वह बात कि हो गुफ़्‌तगो तो क्‌यूंकर हो
कहे से कुछ न हुआ फिर कहो तो क्‌यूंकर हो

हमारे ज़ह्‌न में उस फ़िक्‌र का है नाम विसाल
कि गर न हो तो कहां जाएं हो तो क्‌यूंकर हो

अदब है और यिही कश्‌मकश तो क्‌या कीजे
हया है और यिही गोमगो तो क्‌यूंकर हो

तुम्‌हीं कहो कि गुज़ारा सनम-परस्‌तों का
बुतों की हो अगर ऐसी ही ख़ो तो क्‌यूंकर हो

उलझ्‌ते हो तुम अगर देख्‌ते हो आईनह
जो तुम से शह्‌र में हों एक दो तो क्‌यूंकर हो

जिसे नसीब हो रोज़-ए सियाह मेरा सा
वह शख़्‌स दिन न कहे रात को तो क्‌यूंकर हो

हमें फिर उन से उमीद और उंहें हमारी क़द्‌र
हमारी बात ही पूछें न वो तो क्‌यूंकर हो

ग़लत न था हमें ख़त पर गुमां तसल्‌ली का
न माने दीदह-ए दीदार-जो तो क्‌यूंकर हो

बताओ उस मिज़हह को देख कर कि मुझ को क़रार
यह नेश हो रग-ए जां में फ़िरो तो क्‌यूंकर हो

मुझे जुनूं नहीं ग़ालिब वले ब क़ौल-ए हुज़ूर
फ़िराक़-ए यार में तस्‌कीन हो तो क्‌यूंकर हो

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