Sunday, November 25, 2007

देख्‌ना क़िस्‌मत कि आप अप्‌ने पह रश्‌क आ जाए है

देख्‌ना क़िस्‌मत कि आप अप्‌ने पह रश्‌क आ जाए है
मैं उसे देखूं भला कब मुझ से देखा जाए है

हाथ धो दिल से यिही गर्‌मी गर अन्‌देशे में है
आब्‌गीनह तुन्‌दी-ए सह्‌बा से पिघ्‌ला जाए है

ग़ैर को या रब वह क्‌यूंकर मन`-ए गुस्‌ताख़ी करे
गर हया भी उस को आती है तो शर्‌मा जाए है

शौक़ को यह लत कि हर दम नालह खेंचे जाइये
दिल की वह हालत कि दम लेने से घब्‌रा जाए है

दूर चश्‌म-ए बद तिरी बज़्‌म-ए तरब से वाह वाह
नग़्‌मह हो जाता है वां गर नालह मेरा जाए है

गर्‌चिह है तर्‌ज़-ए तग़ाफ़ुल पर्‌दह-दार-ए राज़-ए `इश्‌क़
पर हम ऐसे खोए जाते हैं कि वह पा जाए है

उस की बज़्‌म-आराइयां सुन कर दिल-ए रन्‌जूर यां
मिस्‌ल-ए नक़्‌श-ए मुद्‌द`आ-ए ग़ैर बैठा जाए है

हो के `आशिक़ वह परी-रुख़ और नाज़ुक बन गया
रन्‌ग खुल्‌ता जाए है जित्‌ना कि उड़्‌ता जाए है

नक़्‌श को उस के मुसव्‌विर पर भी क्‌या क्‌या नाज़ हैं
खेंच्‌ता है जिस क़दर उत्‌ना ही खिंच्‌ता जाए है

सायह मेरा मुझ से मिस्‌ल-ए दूद भागे है असद
पास मुझ आतिश-बजां के किस से ठह्‌रा जाए है

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