Saturday, October 27, 2007

लाज़िम था कि देखो मिरा रस्‌ता कोई दिन और

लाज़िम था कि देखो मिरा रस्‌ता कोई दिन और
तन्‌हा गये क्‌यूं अब रहो तन्‌हा कोई दिन और

मिट जाएगा सर गर तिरा पत्‌थर न घिसेगा
हूं दर पह तिरे नासियह-फ़र्‌सा कोई दिन और

आये हो कल और आज ही कह्‌ते हो कि जाऊं
माना कि हमेशह नहीं अच्‌छा कोई दिन और

जाते हुए कह्‌ते हो क़ियामत को मिलेंगे
क्‌या ख़ूब क़ियामत का है गोया कोई दिन और

हां ऐ फ़लक-ए पीर जवां था अभी `आरिफ़
क्‌या तेरा बिगड़्‌ता जो न मर्‌ता कोई दिन और

तुम माह-ए शब-ए चार-दुहम थे मिरे घर के
फिर क्‌यूं न रहा घर का वह नक़्‌शा कोई दिन और

तुम कौन-से थे ऐसे खरे दाद-ओ-सितद के
कर्‌ता मलक उल-मौत तक़ाज़ा कोई दिन और

मुझ से तुम्‌हें नफ़्‌रत सही नय्‌यर से लड़ाई
बच्‌चों का भी देखा न तमाशा कोई दिन और

गुज़्‌री न ब हर हाल यह मुद्‌दत ख़्‌वुश-ओ-ना-ख़्‌वुश
करना था जवां-मर्‌ग गुज़ारा कोई दिन और

नादां हो जो कह्‌ते हो कि क्‌यूं जीते हैं ग़ालिब
क़िस्‌मत में है मर्‌ने की तमन्‌ना कोई दिन और

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