मज़े जहाँ के अपनी नज़र् में ख़ाक नहीं
सिवाय ख़ून-ए-जिगर, सो जिगर में ख़ाक नहीं
मगर ग़ुबार हुए पर हव उड़ा ले जाये
वगर्ना ताब-ओ-तवाँ बाल-ओ-पर में ख़ाक नहीं
ये किस बहीश्तशमाइल की आमद-आमद है
के ग़ैर जल्वा-ए-गुल राहगुज़र में ख़ाक नहीं
भला उसे न सही, कुछ मुझी को रहम आता
असर मेरे नफ़स-ए-बेअसर में ख़ाक नहीं
ख़्याल-ए-जल्वा-ए-गुल से ख़राब है मैकश
शराबख़ाने के दीवर-ओ-दर में ख़ाक नहीं
हुआ हूँ इश्क़ की ग़ारतगरी से शर्मिंदा
सिवाय हसरत-ए-तामीर घर में ख़ाक नहीं
हमारे शेर हैं अब सिर्फ़ दिल्लगी के 'असद'
खुला कि फ़ायेदा अर्ज़-ए-हुनर में ख़ाक नहीं
ख़ाक : Dust, earth; ashes;
ख़ून-ए जिगर पीना : To suppress (one's) feelings;
शमाइल: Excellences, virtues, talents, abilities;
जल्वह: Manifestation, publicity, conspicuousness;
नफ़स : Breath (of life), animal life;
ख़्याल-ए-जल्वा-ए-गुल: Rose the wine;
मैकश: Drinkers;
सिर्फ़ : Purely, merely, only;
सर्फ़ : Use, employment; expending;
फ़ाइदह : Profit, advantage, benefit;
`अर्ज़ : Presenting or representing;
अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
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अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
हम लोग जब मिले तो कोई दूसरा भी हो
तू जानता नहीं मेरी चाहत अजीब है
मुझको मना रहा हैं कभी ख़ुद खफ़ा भी हो
तू बेवफ़ा नही...
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