Saturday, October 27, 2007

दिल ही तो है न सन्‌ग-ओ-ख़िश्‌त दर्‌द से भर न आए क्‌यूं

दिल ही तो है न सन्‌ग-ओ-ख़िश्‌त दर्‌द से भर न आए क्‌यूं
रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्‌यूं

दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्‌तां नहीं
बैठे हैं रह-गुज़र पह हम ग़ैर हमें उठाए क्‌यूं

जब वह जमाल-ए दिल-फ़ुरोज़ सूरत-ए मिह्‌र-ए नीम-रोज़
आप ही हो नज़ारह-सोज़ पर्‌दे में मुंह छुपाए क्‌यूं

दश्‌नह-ए ग़म्‌ज़ह जां-सितां नावुक-ए नाज़ बे-पनाह
तेरा ही `अक्‌स-ए रुख़ सही साम्‌ने तेरे आए क्‌यूं

क़ैद-ए हयात-ओ-बन्‌द-ए ग़म अस्‌ल में दोनों एक हैं
मौत से पह्‌ले आद्‌मी ग़म से निजात पाए क्‌यूं

हुस्‌न और उस पह हुस्‌न-ए ज़न्‌न रह गई बूल-हवस की शर्‌म
अप्‌ने पह इ`तिमाद है और को आज़्‌माए क्‌यूं

वां वह ग़ुरूर-ए `इज़्‌ज़-ओ-नाज़ यां यह हिजाब-ए पास-ए वज़`अ
राह में हम मिलें कहां बज़्‌म में वह बुलाए क्‌यूं

हां वह नहीं ख़ुदा-परस्‌त जाओ वह बेवफ़ा सही
जिस को हो दीन-ओ-दिल `अज़ीज़ उस की गली में जाए क्‌यूं

ग़ालिब-ए ख़स्‌तह के बग़ैर कौन-से काम बन्‌द हैं
रोइये ज़ार ज़ार क्‌या कीजिये हाय हाय क्‌यूं



जगजीत सिंह की आवाज मे सुनिये

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चित्रा सिंह की आवाज मे सुनिये
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1 comment:

Anonymous said...

BHAISAHIB,KUDA AAP KO LABI UMR DE. BEGUM AKHTAR SAHIBA NE IS GAZAL KO KIS ANDAZ SE GAYA HAI.GOR KEEJEEYE AUR SHOOCK PHARMAIN.