जब तक दहान-ए ज़ख़्म न पैदा करे कोई
मुश्किल है तुझ से राह-ए सुख़न वा करे कोई
`आलम ग़ुबार-ए वह्शत-ए मज्नूं है सर-ब-सर
कब तक ख़याल-ए तुर्रह-ए लैला करे कोई
अफ़्सुर्दगी नहीं तरब-इन्शा-ए इल्तिफ़ात
हां दर्द बन के दिल में मगर जा करे कोई
रोने से अय नदीम मलामत न कर मुझे
आख़िर कभी तो `उक़्दह-ए दिल वा करे कोई
चाक-ए जिगर से जब रह-ए पुर्सिश न वा हुई
क्या फ़ाइदह कि जेब को रुस्वा करे कोई
लख़्त-ए जिगर से है रग-ए हर ख़ार शाख़-ए गुल
ता चन्द बाग़्बानी-ए सह्रा करे कोई
ना-कामी-ए निगाह है बर्क़-ए नज़ारह-सोज़
तू वह नहीं कि तुझ को तमाशा करे कोई
हर सन्ग-ओ-ख़िश्त है सदफ़-ए गौहर-ए शिकस्त
नुक़्सां नही जुनू से जो सौदा करे कोई
सर्बर हुई न व`दह-ए सब्र-आज़्मा से `उम्र
फ़ुर्सत कहां कि तेरी तमन्ना करे कोई
है वह्शत-ए तबी`अत-ए ईजाद यास-ख़ेज़
यह दर्द वह नहीं कि न पैदा करे कोई
बेकारी-ए जुनूं को है सर पीट्ने का शग़्ल
जब हाथ टूट जाएं तो फिर क्या करे कोई
हुस्न-ए फ़ुरोग़-ए शम`-ए सुख़न दूर है असद
पह्ले दिल-ए गुदाख़्तह पैदा करे कोई
No comments:
Post a Comment