जहां तेरा नक़्श-ए क़दम देख्ते हैं
ख़ियाबां ख़ियाबां इरम देख्ते हैं
दिल आशुफ़्तगां ख़ाल-ए कुन्ज-ए दहन के
सुवैदा में सैर-ए `अदम देख्ते हैं
तिरे सर्व-ए क़ामत से यक क़द्द-ए आदम
क़ियामत के फ़ित्ने को कम देख्ते हैं
तमाशा कि ऐ मह्व-ए आईनह-दारी
तुझे किस तमन्ना से हम देख्ते हैं
सुराग़-ए तफ़-ए नालह ले दाग़-ए दिल से
कि शब-रौ का नक़्श-ए क़दम देख्ते हैं
बना कर फ़क़ीरों का हम-भेस ग़ालिब
तमाशा-ए अह्ल-ए करम देख्ते हैं
अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
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अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
हम लोग जब मिले तो कोई दूसरा भी हो
तू जानता नहीं मेरी चाहत अजीब है
मुझको मना रहा हैं कभी ख़ुद खफ़ा भी हो
तू बेवफ़ा नही...
1 comment:
मलिका पुखराज की गायी इस गज़ल को यहाँ दाल देते अगर ...
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