Saturday, October 27, 2007

बना कर फ़क़ीरों का हम-भेस ग़ालिब

जहां तेरा नक़्‌श-ए क़दम देख्‌ते हैं
ख़ियाबां ख़ियाबां इरम देख्‌ते हैं

दिल आशुफ़्‌तगां ख़ाल-ए कुन्‌ज-ए दहन के
सुवैदा में सैर-ए `अदम देख्‌ते हैं

तिरे सर्‌व-ए क़ामत से यक क़द्‌द-ए आदम
क़ियामत के फ़ित्‌ने को कम देख्‌ते हैं

तमाशा कि ऐ मह्‌व-ए आईनह-दारी
तुझे किस तमन्‌ना से हम देख्‌ते हैं

सुराग़-ए तफ़-ए नालह ले दाग़-ए दिल से
कि शब-रौ का नक़्‌श-ए क़दम देख्‌ते हैं

बना कर फ़क़ीरों का हम-भेस ग़ालिब
तमाशा-ए अह्‌ल-ए करम देख्‌ते हैं

1 comment:

Pratyaksha said...

मलिका पुखराज की गायी इस गज़ल को यहाँ दाल देते अगर ...