Sunday, November 25, 2007

कोई उम्‌मीद बर नहीं आती

कोई उम्‌मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती

मौत का एक दिन मु`अय्‌यन है
नींद क्‌यूं रात भर नहीं आती

आगे आती थी हाल-ए दिल पह हंसी
अब किसी बात पर नहीं आती

जान्‌ता हूं सवाब-ए ता`अत-ओ-ज़ुह्‌द
पर तबी`अत इधर नहीं आती

है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूं
वर्‌नह क्‌या बात कर नहीं आती

क्‌यूं न चीख़ूं कि याद कर्‌ते हैं
मिरी आवाज़ गर नहीं आती

दाग़्‌ह-ए दिल गर नज़र नहीं आता
बू भी अय चारह-गर नहीं आती

हम वहां हैं जहां से हम को भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती

मर्‌ते हैं आर्‌ज़ू में मर्‌ने की
मौत आती है पर नहीं आती

क`बे किस मुंह से जाओगे ग़ालिब
शर्‌म तुम को मगर नहीं आती

बेगम अख्तर की आवाज़ मे सुने

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