मुझ को दियार-ए ग़ैर में मारा वतन से दूर
रख ली मिरे ख़ुदा ने मिरी बेकसी की शर्म
वह हल्क़हहा-ए ज़ुल्फ़ कमीं में हैं या ख़ुदा
रख लीजो मेरे द`वा-ए वारस्तगी कि शर्म
The Urdu Ghazals of Mirza Asadullah Kha "GHALIB" (मिर्ज़ा ग़ालिब की उर्दू गजले)
No comments:
Post a Comment