इब्न-ए मर्यम हुआ करे कोई
मेरे दुख की दवा करे कोई
शर`-ओ-आईन पर मदार सही
ऐसे क़ातिल का क्या करे कोई
चाल जैसे कड़ी कमान का तीर
दिल में ऐसे के जा करे कोई
बात पर वां ज़बान कट्ती है
वह कहें और सुना करे कोई
बक रहा हूं जुनूं में क्या क्या कुछ
कुछ न सम्झे ख़ुदा करे कोई
न सुनो गर बुरा कहे कोई
न कहो गर बुरा करे कोई
रोक लो गर ग़लत चले कोई
बख़्श दो गर ख़ता करे कोई
कौन है जो नहीं है हाजत-मन्द
किस की हाजत रवा करे कोई
क्या किया ख़िज़्र ने सिकन्दर से
अब किसे रह-नुमा करे कोई
जब तवक़्क़ु` ही उठ गई ग़ालिब
क्यूं किसी का गिला करे कोई
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