Sunday, November 25, 2007

उस बज़्‌म में मुझे नहीं बन्‌ती हया किये

उस बज़्‌म में मुझे नहीं बन्‌ती हया किये
बैठा रहा अगर्‌चिह इशारे हुआ किये

दिल ही तो है सियासत-ए दर्‌बां से डर गया
मैं और जाऊं दर से तिरे बिन सदा किये

रख्‌ता फिरूं हूं ख़िर्‌क़ह ओ सज्‌जादह रह्‌न-ए मै
मुद्‌दत हुई है द`वत-ए आब-ओ-हवा किये

बे-सर्‌फ़ह ही गुज़र्‌ती है हो गर्‌चिह `उम्‌र-ए ख़िज़्‌र
हज़्‌रत भी कल कहेंगे कि हम क्‌या किया किये

मक़्‌दूर हो तो ख़ाक से पूछूं कि अय लईम
तू ने वह गन्‌जहा-ए गिरांमायह क्‌या किये

किस रोज़ तुह्‌मतें न तराशा किये `अदू
किस दिन हमारे सर पह न आरे चला किये

सुह्‌बत में ग़ैर की न पड़ी हो कहीं यह ख़ू
देने लगा है बोसह बग़ैर इल्‌तिजा किये

ज़िद की है और बात मगर ख़ू बुरी नहीं
भूले से उस ने सैंक्‌ड़ों व`दे वफ़ा किये

ग़ालिब तुम्‌हीं कहो कि मिलेगा जवाब क्‌या
माना कि तुम कहा किये और वह सुना किये

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