Friday, December 14, 2007

फिर कुछ इस दिल् को बेक़रारी है

फिर कुछ इस दिल् को बेक़रारी है
सीना ज़ोया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है

फिर जिगर खोदने लगा नाख़ून
आमद-ए-फ़स्ल-ए-लालाकारी है

क़िब्ला-ए-मक़्सद-ए-निगाह-ए-नियाज़
फिर वही पर्दा-ए-अम्मारी है

चश्म-ए-दल्लल-ए-जिन्स-ए-रुसवाई
दिल ख़रीदार-ए-ज़ौक़-ए-ख़्बारी है

वही सदरंग नाला फ़र्साई
वही सदगूना अश्क़बारी है

दिल हवा-ए-ख़िराम-ए-नाज़ से फिर
महश्रिस्ताँ-ए-बेक़रारी है

जल्वा फिर अर्ज़-ए-नाज़ करता है
रोज़-ए-बाज़ार-ए-जाँसुपारी है

फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है

जगजीत सिंह की आवाज़ मे सुने
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1 comment:

loukik said...

bekarari besabab nahi ghalib, kuch to hai jiski pardadaari hai :)