सीना ज़ोया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है
फिर जिगर खोदने लगा नाख़ून
आमद-ए-फ़स्ल-ए-लालाकारी है
क़िब्ला-ए-मक़्सद-ए-निगाह-ए-नियाज़
फिर वही पर्दा-ए-अम्मारी है
चश्म-ए-दल्लल-ए-जिन्स-ए-रुसवाई
दिल ख़रीदार-ए-ज़ौक़-ए-ख़्बारी है
वही सदरंग नाला फ़र्साई
वही सदगूना अश्क़बारी है
दिल हवा-ए-ख़िराम-ए-नाज़ से फिर
महश्रिस्ताँ-ए-बेक़रारी है
जल्वा फिर अर्ज़-ए-नाज़ करता है
रोज़-ए-बाज़ार-ए-जाँसुपारी है
फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है
जगजीत सिंह की आवाज़ मे सुने
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1 comment:
bekarari besabab nahi ghalib, kuch to hai jiski pardadaari hai :)
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