बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले ।
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन,
बहुत बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले ।
मुहब्बत में नही है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले ।
ख़ुदा के वास्ते पर्दा ना काबे से उठा ज़ालिम,
कहीं ऐसा ना हो यां भी वही काफिर सनम निकले ।
क़हाँ मैखाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़,
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था के हम निकले।
जगजीत सिंह की आवाज़ मे सुने
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1 comment:
this one is cooolest....or just say ..easy to understand....but sure asadullah was great man
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