Sunday, September 2, 2007

हवस को है निशात-ए कार क्‌या क्‌या

हवस को है निशात-ए कार क्‌या क्‌या
न हो मर्‌ना तो जीने का मज़ा क्‌या

तजाहुल-पेशगी से मुद्‌द`आ क्‌या
कहां तक अय सरापा-नाज़ क्‌या क्‌या

नवाज़िशहा-ए बेजा देख्‌ता हूं
शिकायतहा-ए रन्‌गीं का गिला क्‌या

निगाह-ए बे-मुहाबा चाह्‌ता हूं
तग़ाफ़ुल्‌हा-ए तम्‌कीं-आज़्‌मा क्‌या

फ़ुरोग़-ए शु`लह-ए ख़स यक-नफ़स है
हवस को पास-ए नामूस-ए वफ़ा क्‌या

नफ़स मौज-ए मुहीत-ए बे-ख़्‌वुदी है
तग़ाफ़ुल्‌हा-ए साक़ी का गिला क्‌या

दिमाग़-ए `इत्‌र-ए पैराहन नहीं है
ग़म-ए आवारगीहा-ए सबा क्‌या

दिल-ए हर क़त्‌रह है साज़-ए अन-अल-बह्‌र
हम उस के हैं हमारा पूछ्‌ना क्‌या

मुहाबा क्‌या है मैं ज़ामिन इधर देख
शहीदान-ए निगह का ख़ूं-बहा क्‌या

सुन ऐ ग़ारत्‌गर-ए जिन्‌स-ए वफ़ा सुन
शिकस्‌त-ए क़ीमत-ए दिल की सदा क्‌या

किया किस ने जिगर-दारी का द`वा
शकेब-ए ख़ातिर-ए `आशिक़ भला क्‌या

यह क़ातिल व`दह-ए सब्‌र-आज़्‌मा क्‌यूं
यह काफ़िर फ़ित्‌नह-ए ताक़त-रुबा क्‌या

बला-ए जां है ग़ालिब उस की हर बात
`इबारत क्‌या इशारत क्‌या अदा क्‌या

No comments: