हवस को है निशात-ए कार क्या क्या
न हो मर्ना तो जीने का मज़ा क्या
तजाहुल-पेशगी से मुद्द`आ क्या
कहां तक अय सरापा-नाज़ क्या क्या
नवाज़िशहा-ए बेजा देख्ता हूं
शिकायतहा-ए रन्गीं का गिला क्या
निगाह-ए बे-मुहाबा चाह्ता हूं
तग़ाफ़ुल्हा-ए तम्कीं-आज़्मा क्या
फ़ुरोग़-ए शु`लह-ए ख़स यक-नफ़स है
हवस को पास-ए नामूस-ए वफ़ा क्या
नफ़स मौज-ए मुहीत-ए बे-ख़्वुदी है
तग़ाफ़ुल्हा-ए साक़ी का गिला क्या
दिमाग़-ए `इत्र-ए पैराहन नहीं है
ग़म-ए आवारगीहा-ए सबा क्या
दिल-ए हर क़त्रह है साज़-ए अन-अल-बह्र
हम उस के हैं हमारा पूछ्ना क्या
मुहाबा क्या है मैं ज़ामिन इधर देख
शहीदान-ए निगह का ख़ूं-बहा क्या
सुन ऐ ग़ारत्गर-ए जिन्स-ए वफ़ा सुन
शिकस्त-ए क़ीमत-ए दिल की सदा क्या
किया किस ने जिगर-दारी का द`वा
शकेब-ए ख़ातिर-ए `आशिक़ भला क्या
यह क़ातिल व`दह-ए सब्र-आज़्मा क्यूं
यह काफ़िर फ़ित्नह-ए ताक़त-रुबा क्या
बला-ए जां है ग़ालिब उस की हर बात
`इबारत क्या इशारत क्या अदा क्या
अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
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अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
हम लोग जब मिले तो कोई दूसरा भी हो
तू जानता नहीं मेरी चाहत अजीब है
मुझको मना रहा हैं कभी ख़ुद खफ़ा भी हो
तू बेवफ़ा नही...
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