Sunday, November 25, 2007

`इश्‌क़ मुझ को नहीं वह्‌शत ही सही

`इश्‌क़ मुझ को नहीं वह्‌शत ही सही
मेरी वह्‌शत तिरी शुह्‌रत ही सही

क़त`अ कीजे न त`अल्‌लुक़ हम से
कुछ नहीं है तो `अदावत ही सही

मेरे होने में है क्‌या रुस्‌वाई
अय वह मज्‌लिस नहीं ख़ल्‌वत ही सही

हम भी दुश्‌मन तो नहीं हैं अप्‌ने
ग़ैर को तुझ से मुहब्‌बत ही सही

अप्‌नी हस्‌ती ही से हो जो कुछ हो
आगही गर नहीं ग़फ़्‌लत ही सही

`उम्‌र हर-चन्‌द कि है बर्‌क़-ख़िराम
दिल के ख़ूं करने की फ़ुर्‌सत ही सही

हम कोई तर्‌क-ए वफ़ा कर्‌ते हैं
न सही `इश्‌क़ मुसीबत ही सही

कुछ तो दे अय फ़लक-ए ना-इन्‌साफ़
आह-ओ-फ़र्‌याद की रुख़्‌सत ही सही

हम भी तस्‌लीम की ख़ू डालेंगे
बे-नियाज़ी तिरी `आदत ही सही

यार से छेड़ चली जाए असद
गर नहीं वस्‌ल तो हस्‌रत ही सही


तलत महमूद की आवाज़ मे सुने

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