Tuesday, December 4, 2007

बे-ऐतदालियों से सुबुक सब में हम हुए

बे-ऐतदालियों से सुबुक सब में हम हुए
जितने ज़ियादा हो गये उतने ही कम हुए

पिन्हाँ था दाम सख़्त क़रीब आशियाँ के
उड़ने न पाये थे कि गिरफ़्तार हम हुए

हस्ती हमारी अपनी फ़ना पर दलील है
याँ तक मिटे के आप हम अपनी क़सम हुए

सख़्तीकशान-ए-इश्क़ की पूछे है क्या ख़बर
वो लोग रफ़्ता-रफ़्ता सरापा अलम हुए

तेरी वफ़ा से क्या हो तलाफ़ी कि दहर में
तेरे सिवा भी हम पे बहुत से सितम हुए

लिखते रहे जुनूँ की हिकायत-ए-ख़ूँचकाँ
हर्चंद इस में हाथ हमारे क़लम हुए

अल्लाह् रे! तेरी तुन्दी-ए-ख़ू जिस के बीम से
अज़्ज़ा-ए-नाला दिल में मेरे रिज़्क़े-हम हुए

अहल-ए-हवस की फ़तह है तर्क-ए-नबर्द-ए-इश्क़
जो पाँव उठ गये वो ही उन के अलम हुए

नाल-ए-अदम में चंद हमारे सुपुर्द थे
जो वाँ न खिंच सके सो वो याँ आके दम हुए

चोड़ी 'असद्' न हम ने गदाई में दिल्लगी
साइल हुए तो आशिक़-ए-अहल-ए-करम हुए

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