`अर्ज़-ए नियाज़-ए `इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जिस दिल पह नाज़ था मुझे वह दिल नहीं रहा
जाता हूं दाग़-ए हस्रत-ए हस्ती लिये हुए
हूं शम`अ-ए कुश्तह दर्ख़्वुर-ए मह्फ़िल नहीं रहा
मर्ने की ऐ दिल और ही तद्बीर कर कि मैं
शायान-ए दस्त-ओ-ख़न्जर-ए क़ातिल नहीं रहा
बर-रू-ए शश जिहत दर-ए आईनह बाज़ है
यां इम्तियाज़-ए नाक़िस-ओ-कामिल नहीं रहा
वा कर दिये हैं शौक़ ने बन्द-ए नक़ाब-ए हुस्न
ग़ैर अज़ निगाह अब कोई हाइल नहीं रहा
गो मैं रहा रहीन-ए सितम्हा-ए रोज़्गार
लेकिन तिरे ख़याल से ग़ाफ़िल नहीं रहा
दिल से हवा-ए किश्त-ए वफ़ा मिट गई कि वां
हासिल सिवा-ए हस्रत-ए हासिल नहीं रहा
बेदाद-ए `इश्क़ से नहीं डर्ता मगर असद
जिस दिल पह नाज़ था मुझे वह दिल नहीं रहा
अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
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अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
हम लोग जब मिले तो कोई दूसरा भी हो
तू जानता नहीं मेरी चाहत अजीब है
मुझको मना रहा हैं कभी ख़ुद खफ़ा भी हो
तू बेवफ़ा नही...
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