Monday, October 22, 2007

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्‌या होता

हुआ जब ग़म से यूं बे-हिस तो ग़म क्‌या सर के कट्‌ने का
न होता गर जुदा तन से तो ज़ानू पर धरा होता

हुई मुद्‌दत कि ग़ालिब मर गया पर याद आता है
वह हर इक बात पर कह्‌ना कि यूं होता तो क्‌या होता

1 comment:

Vivek said...

Galib was wonderful
http://vivj2000.blogspot.com/