कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तूने हमनशीं
इक तीर मेरे सीने में मारा के हाये हाये
वो सब्ज़ा ज़ार हाये मुतर्रा के है ग़ज़ब
वो नाज़नीं बुतान-ए-ख़ुदआरा के हाये हाये
सब्रआज़्मा वो उन की निगाहें के हफ़ नज़र
ताक़तरूबा वो उन का इशारा के हाये हाये
वो मेवा हाये ताज़ा-ए-शीरीं के वाह वाह
वो बादा हाये नाब-ए-गवारा के हाये हाये
अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
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अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
हम लोग जब मिले तो कोई दूसरा भी हो
तू जानता नहीं मेरी चाहत अजीब है
मुझको मना रहा हैं कभी ख़ुद खफ़ा भी हो
तू बेवफ़ा नही...