Sunday, December 16, 2007

रोने से और् इश्क़ में बेबाक हो गए

रोने से और् इश्क़ में बेबाक हो गए
धोए गए हम ऐसे कि बस पाक हो गए

सर्फ़-ए-बहा-ए-मै हुए आलात-ए-मैकशी
थे ये ही दो हिसाब सो यों पाक हो गए

रुसवा-ए-दहर गो हुए आवार्गी से तुम
बारे तबीयतों के तो चालाक हो गए

कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बेअसर
पर्दे में गुल के लाख जिगर चाक हो गए

पूछे है क्या वजूद-ओ-अदम अहल-ए-शौक़ का
आप अपनी आग से ख़स-ओ-ख़ाशाक हो गए

करने गये थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला
की एक् ही निगाह कि बस ख़ाक हो गए

इस रंग से उठाई कल उस ने 'असद' की नाश
दुश्मन भी जिस को देख के ग़मनाक हो गए

रुसवा-ए-दहर : Disgraced in the world
नाला-ए-बुलबुल : Nightingale's lament
ख़स-ओ-ख़ाशाक : Sticks and straws, litter, rubbish
ख़ाशाक: Sweepings, chips, shavings, leaves

3 comments:

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

ये ब्लाग - एक उम्दा कोशिश।

Asha Joglekar said...

बेहद बढिया गजल़ । पर जरा मुश्किल उर्दु वाली । थोडे और लफ्जों के मायने देते तो अच्छा होता ।

Anonymous said...

searching for a couplet with the idea:>MANA TERI RAHMAT HAI MUSALLAM PAR YEH TO BATA/BARQUE KO KAUN DETA HAI PATA AASHIYAANE KA{MODIFIED}.LOKING FOR THE ORIGINAL,BY GHALIB{most likely},kind regards!